दस साल पहले तक सोशल नेट वर्किंग का चस्का इतना नहीं था,
ना किसी ने सोचा था की future में ज़्यादातर लोगों का,
सुबह का प्रेशर नोटिफ़िकेशंज़ पढ़े बिना नहीं बनेगा
ख़ैर…अब तो बच्चा बाद में पैदा होता है, उसके सोशल नेट वर्किंग साइट्स पर पेजेज़ पहले बन जाते है.
Brand integration, monetization, influencers,
viral videos के इस दौर में,
“कौन बोला – कौन बोला
तुझसे ना हो पाएगा…”
माँ क़सम रणवीर ने ये गाना क्या गाया, मेरे दोस्तों ने बड़ा seriously ले लिया.
सबसे हो रहा है,
क्या हो रहा है, ये उन्हें भी नहीं पता.
दरअसल जो कुछ हो रहा है सोशल नेट वर्किंग साइट्स पर हो रहा है.
बवाल मचा है भाई.
रात में बंदा सोने से पहले डिसाइड करता है, कल सुबह अपनी पोस्ट में किस-किस को tag करना है.
फिर एक टेढ़ी सी शक्ल के साथ सेल्फ़ी लेकर, अपने 2375 दोस्तों को tag करके उपर लिखते भी हैं –
“दुनिया ने मुझे नहीं समझा,कोई ग़म नहीं,
दुनिया ने मुझे नहीं समझा,कोई ग़म नहीं,
आप जैसे दोस्त नहीं होंगे,
तो हम नहीं, तो हम नहीं ”🙁 😊
भाई, सबको हक़ है टेढ़ी शक्ल बनाने का, फ़ोटू खिंचाने का, उसे अपलोड करने का.
लेकिन दोस्तों को tag करने का ???
नहीं नहीं ये हक़ आपका नहीं हो सकता.
जिस फ़ोटू में वो ग़रीब बापड़ा है ही नहीं, उसमें उसे टैग क्यूँ करना भाई.
“वो भी तो करता है.”
फिर तो तुम्हारी जोड़ी पर्फ़ेक्ट है…खेलते रहो आपस में लेकिन दूसरों को बक्श दो.
सोशल नेटवर्किंग साइट यूज़र्ज़ की तमीज़ की क़मीज़ वाक़ायी छोटी हो गयी है,
कुछ तो क़मीज़ पहनते ही नहीं हैं.
लेकिन कुछ लखनऊ की वाणी रविजा जो एक Software engineer turned Voice Artist हैं उनकी तरह भी हैं, वो कहती हैं–
“सोशल नेटवर्किंग साइट एक ऐसा प्लाट्फ़ोर्म है, जहाँ आप अपना टैलेंट शोकेस कर सकते हैं. एक introvert पर्सनालिटी होने
के नाते, सोशल नेटवर्किंग साइट पर मैं बिना झिझके अपने टैलेंट को दुनिया के सामने रख पाती हूँ, और जब कॉमेंट और लाइक
मिलते हैं तो वो मेरे लिए दर्शकों की तालियों से कम नहीं. सोशल नेटवर्किंग साइट पर ही मैं कयी टैलेंट्स से मिली, जो
अब मेरे अच्छे दोस्त हैं, मुझे नहीं लगता अगर facebook, instagram और youtube नहीं होता तो ये कभी मुमकिन हो पता.
मैं इसे एक learning platform की तरह देखती हूँ, इससे inspiration लेती हूँ. मुझे लगता है हमें इस platform में बहना
नहीं चाहिए …हमें पता होना चाहिए इस ख़ूबसूरत platform का इस्तेमाल कैसे किया जाए.”
दिल्ली के एक अंकल का कहना अलग था, वो तो टैग करने के दीवाने हैं. पर जब उनसे पूछा आपके इस समाज बदलू काम से लोग
परेशान भी हो रहे हैं चचा.
तो बोले- “अरे तो काहे आए facebook में, अनिस्टाल (अनइंस्टाल) कर लो, पर मैं तो tagging करूँगा, फ़्रेंड काहे बनाए
हैं ”
जब मैंने उनसे अपने आर्डिकल के लिए फ़ोटो माँगी तो ये कहके माना कर दिया- “अबे भाग जाओ फ़ोटो छाप के बेज़्ज़ती
मारोगे”. और अपनी फ़ोटो नहीं दी.
भगवान करे चचा का फ़ोन चोरी हो जाए, या facebook ब्लाक हो जाए, ये मैं नहीं उनके रिश्तेदार कहते हैं, जो चचा के
पोस्ट में ख़ुदको ना untag कर सकते हैं, ना उनकी पोस्ट को लाइक.
कभी कभी तो honeymoon की पोस्ट में नयी नयी बीवी लिख देती है,
Enjoying honeymoon with husband – and 72 others.
बेचारी शादी की excitement कंट्रोल नहीं कर पायी.
दरअसल सारा प्रोबलम, कंट्रोल खोने का ही है.
किसी का ज़बान पे कंट्रोल नहीं है, किसी का हाथ पे कंट्रोल नहीं है.
कोई video में गंदगी फैला रहा है, कोई लिखके अपने जाहिल होने का सबूत दे रहा है.
सोशल नेटवर्किंग साइट, काईयों के हथियार बने हुए हैं.
“सोशल नेटवर्किंग साइट ख़राब लत की तरह !?”
लत तो लग गयी है वैसे, या कहिए लगा दी गयी है.
फ़ोन के माडल्ज़ हर छे महीने में नए अप्ग्रेड के साथ लॉंच हो रहे
हैं,
लेकिन उसे use करने वाले अप्ग्रेड होने के भ्रम में जी रहे हैं.
Technology को ग़लत बोलना बिलकुल ठीक नहीं होगा, हाँ technology का इस्तेमाल ग़लत या सही हो सकता है.
मेरा एक दोस्त है, जिसने कुछ महीने पहले ही whatsapp use करना शुरू किया है, मजबूरी में. क्यूँकि KG में पढ़ रहे उसके
बच्चे की स्कूल के अप्डेट whatsapp ग्रुप में आते हैं.
और एक बार जब whatsapp में आपका ग्रुप बन जाता है, तो आपका वक़्त हाथ से फिसलता जाता है.
30 लोगों के “old friends” ग्रुप में हर एक को जवाब में – “haha”, wow, इत्यादि लिखने में आपका एक घंटा कहाँ जाता है
पता ही नहीं चलता.
इस फिसलपट्टी को कंट्रोल करना होगा.
हर जोक के बाद, हँसने वाली, या इतनी ज़ोर से हँसने वाली की आँख से आँसू निकालने वाली स्माइली भेजने की लत को छोड़ना
होगा.
वरना क्या होगा ये तो नहीं पता, पर पछतावा ज़रूर होगा.
हर अपलोड के बाद, कॉमेंट और लाइक्स के इंतेज़ार में बार बार app चेक करने में ही 24 में से 5-6 घंटे तो निकल ही जाते
होंगे.
घबराइये नहीं सब ठीक हो जाएगा. व्रत लेने या मंदिर जाने की ज़रूरत नहीं है. ख़ुद पे कंट्रोल रखिए, फ़ोन के अलावा
nature पे ध्यान दीजिए.
खिड़की से बाहर झाँकिए हो सकता है ट्रैफ़िक देखना ज़्यादा मज़ेदार हो.
दोस्त से personally मिलने जाईए, मज्जा आजाएगा.
“सोशल नेटवर्किंग साइट्स पे पहनकर जाने वाली तमीज़ की कमीज़”
- काम और personal post के अंतर को समझिए. personal लाइफ़ में ज़्यादा seriuos होने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन काम के पोस्ट्स को मज़ाक़ में ना लें. अपने भी और दूसरों के भी.
- कुछ बातें या पोस्ट आपकी असली पर्सनालिटी के ठीक उलट होती हैं, तो देखलें कहीं इससे आप अपनी image तो नहीं बदल रहे, (वैसे भी आपको इसकी बड़ी टेन्शन रहती होगी )
- यार फ़ोटो में जो है सिर्फ़ उसे ही टैग करो. अपनी ख़ूबसूरत सोलो फ़ोटो में टैग करने की क्या ज़रूरत है. कोई पोस्ट या article अगर किसी को टैग करने का मन करे, तो उसकी पसंद ना पसंद का ध्यान रखें.
- हर छोटी बात पे इतने भी रीऐक्शन ना दें, की आपनी वेल्लापंती का certificate ही ऑनलाइन कर दें.
- हो सकता है आपका मज़ाक़ दुनिया को ना समझ आए. या आपका मज़ाक़ मज़ाक़ ही ना हो, उससे सिर्फ़ आपका मज़ाक़ बन रहा हो.
- Don’t drink and
drivepost- (भावनाओं में बहकर किसका भला हुआ है बे ) - हर चीज़ शेर करने लगे तो कुछ महीनों बाद अपनी ही टाइम लाइन से नफ़रत होने लगेगी.